Gulzar Shayari
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
Gulzar Shayari
आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
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Gulzar Shayari
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
Gulzar Shayari
आप के बाद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है
Gulzar Shayari
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई
Gulzar Shayari
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
Gulzar Shayari
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
Gulzar Shayari
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
Gulzar Shayari
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