राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
read more
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
read more
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर' फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
ऐसे ही हिंदी शायरी पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिये
read more