बहुत मुशिकल से करता हु तेरी यादो का करोबार मुनाफ़ा काम है पर गुज़ारा हो ही जाता है

एक उम्र गवा दी तेरी चाहत में हमने, कितने खुशनसीब होंगे वो तुझे मुफ्त में पाने वाले

वो दौर भी आया सफ़र में जब मुझे अपनी पंसद से भी नफरत हुई

इतना क्यों सिखाई जा रही हो जिंदगी, हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी, जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं

गुजर गया वो वक़्त, जब तेरी हसरत थी मुझे, अब तू खुदा भी बन जाये तो भी, तेरा सजदा न कर

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