गुलाब , ख्याब , दवा , ज़हर ,जाम क्या क्या है
में आ गया हु बता इतज़ाम क्या क्या है
फ़क़ीर , शाह ,कलंदर, इमाम क्या क्या है
तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या क्या है
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,
पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे
तेरी हर बात
मोहब्बत में गँवारा करके
,दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके
,मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
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