Sad Shayari

अकेली रातें बोलती बहुत मगर सुन वही सकता है जो खुद भी अकेला हो

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हर एक लकीर एक तजुर्बा है साहब झुर्रियाँ चेहरों पर यूँ ही नहीं आती

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एक घुटन सी होती है इस दिल के अंदर जब कोई दिल में तो रहता है मगर साथ नहीं

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दिल टूटने पर भी जो शिकायत नहीं करता उस शख़्स की मोहब्बत में कमियाँ मत निकालना

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वफ़ाएँ करना तो कोई हमसे सीखे जिसे टूटकर चाहा उसे ख़बर तक नहीं

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इंसान को अकेले जीना आ ही जाता है जब उसे ये पता चल जाए कि उसके साथ जीने वाला अब कोई भी नहीं

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जब मोहब्बत और नफरत एक ही इंसान से हो जाए अब या तो भ्रम टूटेगा या तुम्हारा दिल

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कभी आरजू थी कि हर कोई जाने मुझे मगर आज तलब है कि मैं गुमनाम ही रहूँ

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