ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो, ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है।

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से।

इतना क्यों सिखाई जा रही हो जिंदगी हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

ज़िन्दगी आज फिर खफा है हमसे खैर छोडिये… कहाँ पहेली दफा है

hindi sad shayari

फिक्र है सबको खुद को सही साबित करने की, जैसे ये ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी नहीं, कोई इल्जाम है।

हम ही पत्थर के हो गये ये सोचके कि ज़िंदगी तो ! फूल बनेगी नहीं 

मेरे बेजुबा इश्क को गम का तोहफा दे गई जिंदगी बन कर आई थी और जिंदगी ही ले गई 

मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है 

जख्म खाने की कोई उम्र नहीं होती… हर उम्र के अपने जख्म होते हैं”

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