Mirza Ghalib famous Shayari in Hindi
“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”
Sirf Gulab Dene Se Agar Mohbbat Ho Jati To- Mirza Ghalib Shayari
“सिर्फ गुलाब देने से अगर मोहब्बत हो जाती तो
आज माली पुरे शहर का महबूब होता “
Tere Bagaur Kisi Ko Dekha Nhi Meine-Mirza Ghalib Shayari
“तेरे बगौर किसी को देखा नहीं मैंने
सुख गया तेरे गुलाब पर फेका नहीं मैंने”
Mili Hai Jo Muft mein Ek Jan Mirza Ghalib Shayari
“मिली है जो मुझे मुफ्त में एक जान
उसे तुझ पर लुटाने का दिल करता है”
Humne To Pyr Ke Do Lafz Bhi Nasheeb Nhi- Mirza Ghalib Ki Shayari
“हमें तो पैर के दो लफ्ज़ भी नशीब नहीं
बदनाम ऐसे हुए जैसे इश्क के बादशाह है हम”
Bat Sidhi Si Hai aap- Mirza Ghalib Shayari
“बात सीधी सी है आप
कुदरत का खेल रखोगे
और कुदरत आपका ख्याल रखेंगे”
दिखावा मत कर मेरे शहर में
“दिखावा मत कर मेरे शहर में शरिफ होने का
हम खामोश तो है लेकिन न समझ नहीं”
“रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है”
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं
“वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं”
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना
“इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना”
Mirza Ghalib Hindi Sad Shayari ‘Guzar Jayega Ye Daur Bhi’
“गुज़र जायेगा ये दौर भी ‘ग़ालिब ‘
ज़रा इत्मीनान तो रख जब
खुशी ही न ठहरी तो ‘गम ‘
की क्या औकात है”
“मेरी जेब में ज़रा सा छेद क्या हो गया
सिक्के से ज्यदा रिश्ते गिर गए “
Mirza Ghalib Hindi Sad Shayari ‘Rhne de Mujhe in Andhoro’
रहने दे मुझे इन अंधोरो में ‘ग़ालिब ‘
कमबख्त रोशनी में अपने के असली
चहरे नज़र आते है
जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो
उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हो उसका ज़िक्र तो बारिश सी दिल में होती है
वो याद आये तो आती है दफ’तन ख़ुशबू
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!
बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो
खार भी ज़ीस्त-ए-गुलिस्ताँ हैं,
फूल ही हाँसिल-ए-बहार नहीं
मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया,
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं
उस पे आती है मोहब्बत ऐसे
झूठ पे जैसे यकीन आता है
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है
हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता
इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
फिर आबलों के ज़ख़्म चलो ताज़ा ही कर लें,
कोई रहने ना पाए बाब जुदा रूदाद-ए-सफ़र से
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले