गुनाह कुछ ऐसे हुए हमसे अनजाने में,
फूलों का कत्ल कर बैठे पत्थरों को मनाने में,
अच्छे तो सभी है यहां बस
पहचान बुरे वक्त में होती है
कितना मुश्किल है उस इंसान को मनाना
जो रूठा भी ना हो और बात भी ना करें
उसने पूछा तोहफ़े में तुम्हें क्या चाहिए
हमने कहा वो मुलाक़ात जो कभी ख़त्म ना हो
वक्त लगेगा तुझे भुलाने में
यही सोच रहा हूं मैं कई सालों से
जिस इंसान को हमें खोने का डर ही ना था
उस इंसान को हमारे ना होने का अफसोस क्या होगा
अगर वो मेरा ही नहीं तो लड़ाई कैसी
और सच सामने आ ही जाए फिर सफ़ाई कैसी
किसी के कपड़े उतारना वफ़ा का सबूत नहीं
किसी का पल्लू संभाल सको तभी इश्क़ करना
“बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है:- Gulzar Shayari
“बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है”
“मौत से आँखे गिलाने की ज़रूरत क्या है”
“सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल”
“यही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है”
“ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखों”
“क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है”
“दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी”
“यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है”
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Gulzar Shayari In Hindi |