Gulzar Biography In Hindi :- गुलज़ार साहब भारत के सबसे प्रशिद्ध कवी है , गुलज़ार साहब जी हिंदी, उर्दू, पंजाबी अदि में बहुत कविताये लिखी है , गुलज़ार साहब भारतीय कवी, गीतकार , पठकथा , लेखक , फिल्म निर्देशक और नाटकार भी रहे है। गुलज़ार साहब जी को भारतीय सिंनेमा की तरफ से कोई प्रशिद्ध अवार्ड मिल चुके है। गुलज़ार साहब से ने 2007 मेंउन्होंने हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर का गाना जय हो लिखा और उन्हें इस गाने के लिए ग्रैमी अवार्ड से भी नवाजा गया।
गुलज़ार की जीवनी
- चौरस रात (लघु कथाएँ, 1962)
- जानम (कविता संग्रह, 1963)
- एक बूँद चाँद (कविताएँ, 1972)
- रावी पार (कथा संग्रह, 1997)
- रात, चाँद और मैं (2002)
- रात पश्मीने की
- खराशें (2003)
संगीत का प्रेम:
गुलज़ार का संगीत में दिलचस्प रूचि था, और उन्होंने इसे अपना पेशेवर करियर बनाने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने अपने शब्दों के जादू से कई गानों को अमर बनाया, जैसे कि “तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी” (फ़िल्म: ‘मासूम’), “तेरे बिना जीना वांगा नहीं” (फ़िल्म: ‘आंधी’), और “जैसे कोई इल्ज़ाम नहीं” (फ़िल्म: ‘क़ुबूल’)।
लेखन में उच्चता:
गुलज़ार के लेखन में उनकी अद्वितीयता और गहराई दिखती है। उन्होंने अनेक प्रमुख उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित किए हैं, जैसे कि ‘धुप-छांव’, ‘रावण की रातें’, ‘आंधाधुंध’ आदि। उनकी कविताएँ भी उनके लेखन की महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उन्होंने विविध विषयों पर कई उत्कृष्ट कविताएँ रची हैं।
फ़िल्मों का सफर:
गुलज़ार ने फ़िल्म उद्यम में भी अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। उन्होंने कई मानवीय और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फ़िल्मों का निर्देशन किया, जैसे कि ‘माचिस’, ‘माकर’, ‘आंधी’, ‘मासूम’, आदि। उन्होंने ‘माचिस’ के लिए बेस्ट डायरेक्टर की नामांकनीयता प्राप्त की थी।
सम्मान और पुरस्कार:
गुलज़ार को उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। उन्हें अर्जुन पुरस्कार, पद्मभूषण, पद्मश्री, सहित अनेक प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
गुलज़ार साहब के गीत लेखन
Gulzar Shayari In Hindi: Two Line Shayari
और एक लम्हा है जो मुझसे गुज़ारा नही जाता|”
“एक उम्र है जो बितानी है तेरे बग़ैर,
“पूछो हमसे शायरी क्या होती है,
हर लफ्ज़ में बर्बाद हुए है हम उसके लिए |”
“बहुत अंदर तक जला देती है,वो शिकायते जो बयाँ नही होती है |”
“मेरे लहज़े में बस ‘जी हजुर ‘ नही था,इसके अलवा मेरा कोई कसूर नही था |”
“खरीदार बहुत थे इस दिल केबेच देते अगर इसमें तुम ना होते ”
“बहुत मुशिकल से करता हु तेरी यादो का करोबारमुनाफ़ा काम है पर गुज़ारा हो ही जाता है “
“वो दौर भी आया सफ़र मेंजब मुझे अपनी पंसद से भी नफरत हुई ”
“एक उम्र गवा दी तेरी चाहत में हमने,कितने खुशनसीब होंगे वो तुझे मुफ्त में पाने वाले”
“किस्सा बना दिया उन लोगो ने भी मुझे,जो कल तक मुझे अपना हिस्सा बतया करते थे “
“इतना क्यों सिखाई जा रही हो जिंदगी,हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां”
“तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं”
“गुजर गया वो वक़्त, जब तेरी हसरत थी मुझे,अब तू खुदा भी बन जाये तो भी,तेरा सजदा न कर”
“शाम से आँख में नमी सी है,आज फिर आपकी कमी सी है”
“खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं,हवा चले न चले दिन पलटते रहते है”
गुलज़ार:- वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता था
“वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता थाकिसी थैले में भर के गर ख़याल अपनेमैं दरवाज़े पे हरकारे की सूरत जा के पहुँचाताचमकती बूँदें बारिश की किसी की जेब में भर केगले में बादलों का एक मफ़लर डाल कर आतावो भीगा भीगा सा रहताकिसी के कान में दो बालियों से चाँद पहनातामछेरों की कोई लड़की अगर मिलतीगरजते बादलों को बाँध कर बालों के जोड़े मेंधनक की बीनी दे आतामुझे गर कहकशाँ को बाँटने का हक़ दिया होता ख़ुदा ने तोकोई फ़ुटपाथ से बोलाऐ औलाद शाइ’र कीबहुत खाई हैं रूखी रोटियाँ मैं नेजो ला सकता है तो इक बार कुछ सालन ही ला कर दे”
गुलज़ार की जीवनी एक उत्कृष्ट कलाकार की सफलता की अद्वितीय कहानी है, जिसने शब्दों की जादूगरी से लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनकी साहित्यिक, संगीत और फ़िल्मी यात्रा ने उन्हें एक महान कलाकार के रूप में स्थापित किया है, जिसकी महत्वपूर्ण यादगारी हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी।
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