Ahmad Faraz Shayari Biography in Hindi Hindi Shayari

Biography Of Ahmad Faraz and Creations

Biography Of Ahmad Faraz and Creations

Biography Of Ahmad Faraz in Hindi, अहमद फ़राज़ साहब पाकिस्तान के बड़े उर्दू शायरों में से एक हैं, लेकिन भारत समेत तमाम उर्दू और हिंदी भाषी देशों में उनकी शायरी को बहुत पसंद किया जाता है। अहमद फ़राज़ साहब पाकिस्तान के बड़े उर्दू शायरों में से एक हैं लेकिन उनकी शायरी को भारत समेत तमाम उर्दू और हिंदी भाषी मुल्कों में बहुत पसंद किया जाता है।

Ahmad Faraz का जन्म और स्थान (Birth And Place)

Ahmad Faraz  जी का जन्म 12 जनवरी 1931 में पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था, जोकि अब कोहट में है । अहमद फ़राज़ का असली नाम सैयद अहमद शाह था जिन्हे बाद में अहमद फ़राज़ के नाम से जाना जाता है।  

अहमद फ़राज़ को बचपन से पायलट  बनाने का मन था परन्तु अपनी माँ के मना करने पर उसे छोड़ दिया बाद इन्हे शेर और शायरी में जय्दा रूचि होने लगी और हमे एक नए युग ने शायर मिले जिन्हे हम फ़राज़  के नाम से जानते है। अहमद फ़राज़ सैयद के एक कुलीन और प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते हैं, वह कोहट के प्रसिद्ध संत हाजी बहादर के वंशज थे। उनके पिता का नाम सैयद मुहम्मद शाह बरक़ी था। 

उनके भाई, सैयद मसूद कौसर एक प्रसिद्ध राजनेता थे और उन्होंने संचार मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, राज्यपाल केपीके जैसे कई वरिष्ठ सरकारी पदों पर अपना स्थान लिया। 

प्रारंभिक जीवन (Early Life) और अध्ययन (Education)

वह प्रसिद्ध पाकिस्तानी उर्दू कवि थे । उनको बीसवीं सदी के महान उर्दू कवियों में गिना जाता है । फ़राज़ उनका तखल्लुस था ।  उन्होंने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू विषय का अध्ययन किया था।  बाद में फ़राज़ वही पर प्राध्यापक हो गए, उन्हें बचपन से ही पायलट बनने का था पर बाद में उन्हें शेर शायरी में अभिरुचि होने लगी और वह शेर शायरी करने लगे। फ़राज़ अंत्याक्षरी प्रतियोगिताओं में भाग लिया करते थे। 

वह इक़बाल के रचनाओ से काफी प्रभावित थे, और आगे चलकर वह प्रगतिवादीन कविताओं को पसंद करने लगे।  अली सरदार जाफ़री और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने जियाउल हक के शासन के समय कुछ ऐसी गज़लें लिखकर मुशायरों में पढ़ीं जिनके कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा।  फ़राज़ रेडियो पाकिस्तान से जुड़े और बाद में वह पेशावर यूनिवर्सिटी मे ही उर्दू के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किए गए। फ़राज़  अपने लेखन में सरल भाषा का प्रयोग करते थे जिसे हर आम आदमी इनकी लेखन को समझ सकता था। 

वे 1976 में पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स के डायरेक्टर जनरल और फिर उसी एकेडमी के चेयरमैन भी बने। 2004 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से नवाज़ा गया । पाकिस्तान में रहने वाले फराज़ आधे पाकिस्तानी और आधे हिन्दुस्तानी थे | फराज़ की शायरी में रोमांस और इंकलाब दोनों मौजूद थे।  2006 में उन्होंने यह (हिलाल-ए-इम्तियाज़) पुरस्कार इसलिए वापस कर दिया कि वे सरकार की नीति से सहमत और संतुष्ट नहीं थे। फ़राज़ को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था और उन पर ऐसा छाया कि वे अपने समय के ग़ालिब कहलाए।

फराज़ छोटे थे और ईद पर उनके पिता जी कपड़े खरीद कर लाये थे पर उन्हें पसंद नहीं आये थे तो उन्होने एक शेर कहा था ,

“सबके वास्ते लाए हैं कपड़े सेल से।
लाए हैं मेरे लिए कैदी का कम्बल जेल से।”

Ahmad Faraz
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“सबके वास्ते लाए हैं कपड़े सेल से।
लाए हैं मेरे लिए कैदी का कम्बल जेल से।”

Ahmad Faraz

प्रसिद्धि (Popularity)

तरक्की पसंद शायरी के दौर में जिस एक शायर ने अस्ल लहजे को बजिद नहीं छोड़ा और तमाम उम्र ग़ज़ल की नाज़ुक मिज़ाजी से मुतासिर रहे जनाब अहमद फराज़ साहब शायरी में उसी शख़्सियत का नाम है। फराज़ साहब की शख़्सियत से जुड़ी हुई एक अहम बात ये भी  है कि वो अपने दौर के सबसे मक़बूल शायरों में से थे। मशहूर हो चुकी उनकी ग़ज़लों के इन शेरों से आप वाकिफ़ ही होंगे। फराज़ साहब ने उर्दू शायरी को एक बहुत नर्म और नाज़ुक अहसास अता की और ग़ज़ल जिसका मतलब ही माशूका से गुफ़्तगू करना होता है उसे नए अंदाज़ दिए। फराज़ साहब ने इश्क़, मुहब्बत और महबूब से जुड़े हुए ऐसे बारीक एहसासात को शायरी की ज़बान दी है जो अर्से पहले तक अनछुए थे। फराज़ साहब की शायरी में घुमा-फिराकर बात करने की जगह नहीं है| हिंद-पाक के मुशायरों में जितनी मुहब्बतों और दिलचस्पी के साथ फराज़ साहब को सुना गया है

फराज़  एक सच्चे दिल के आदमी थे सच्चाई और बेबाक़ी उनका मूल स्वभाव था। उन्होंने सरकार और सत्ता के भ्रष्टाचार का विरोध करते हुए  हमेशा अपनी आवाज बुलन्द की हैं। उनकी ज्यादातर रचनाएँ जनरल जियाउल हक के शासन के विरोध तथा हस्तक्षेप में होती थी। उनकी शायरी के कई संग्रह प्रकाशित हुए। ग़ज़लों के साथ ही उन्होंने नज़्में भी लिखी। लेकिन लोग उनकी ग़ज़लों के दीवाने हैं। 

अहमद फ़राज़ ग़ज़ल के ऐसे शायर थे, फ़राज़ अपने समय के बड़े शायरों में से एक थे। मीर तकी मीर साहब से बहुत प्रभावित थे ये बात आप उनके इस शेर में देख सकते है, जिन्होंने जनता में गज़ल को लोकप्रिय बनाने का काम बखुबी किया है। इन्होने ने अपने संग्रहों के माध्यम से बहुत ही कम समय में वह ख्याति अर्जित कर ली जो बहुत कम शायरों को नसीब होती है। बल्कि अगर ये कहा जाए तो गलत न होगा कि इक़बाल के बाद पूरी बीसवीं शताब्दी में केवल फ़ैज और फ़राज़ का नाम आता है जिन्हें शोहरत की बुलन्दियाँ नसीब रहीं, बाकी कोई शायर अहमद फ़राज़ जैसी शोहरत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सका।

मृत्यु (Death)

पाकिस्तान के प्रसिद्ध रचनाकार अहमद फ़राज़ की मृत्यु 25 अगस्त, 2008 को इस्लामाबाद में एक निजी अस्पताल में वृक्कों(किडनी) की विफलता के कारण हुई। इनका अन्तिम संस्कार 26 अगस्त को कई प्रशंसकों और सरकारी अधिकारियों के बीच एच. 8 कब्रिस्तान, इस्लामाबाद, पाकिस्तान में ससम्मान के साथ किया गया।

Ahmad Faraz का साहित्य लेखन

उनकी ग़ज़लों और नज़्मों के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें खानाबदोश, ज़िंदगी! ऐ ज़िंदगी और दर्द आशोब (ग़ज़ल संग्रह) और ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में (ग़ज़ल और नज़्म संग्रह) शामिल हैं।

फ़राज़ की शायरी में आपको दर्द और मोहब्बत दोनों ही देखने को मिलती है जैसे ये

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

Ahmad Faraz

फ़राज़ अपने समय के बड़े शायरों में से एक थे। मीर तकी मीर साहब से बहुत प्रभावित थे ये बात आप उनके इस शेर में देख सकते है,

आशिक़ी में ‘मीर’ जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो

Ahmad Faraz

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

Ahmad Faraz

मैं यहाँ उनके कुछ चुनिंदा दर्द भरे आशारो को लेकर एक कोशिश कर रहा हू, ताकि एक बार फिर से फराज़ साहब को ज़हनो मे ज़िंदा किया जा सके।

“अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम”

Ahmad Faraz

“आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा”

“दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे”

Ahmad Faraz

ख्वाब, जुदाई, फूल और किताबो की मुलाकात इस शेर में आप भी ग़ौर फरमाये

“अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें”

Ahmad Faraz

“ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें”

Ahmad Faraz

“अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ”

Ahmad Faraz

“हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी”

“अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए
ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे”

Ahmad Faraz

“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ”

Ahmad Faraz

“अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ”

Ahmad Faraz

“ऐसा जैसे किसी ने लफ्ज़ो को रवानी दे दी हो
ज़िंदाबाद, मेहंदी हसन साहब ज़िंदाबाद”

Ahmad Faraz

“इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम”

Ahmad Faraz

“इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते”

Ahmad Faraz

“सब ख़्वाहिशें पूरी हो ‘फराज़’ ऐसा नहीं है
जैसे कई आशार मुकम्मल नहीं होते”

Ahmad Faraz

“सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते”

Ahmad Faraz

“इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ”

Ahmad Faraz

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